Chindi Mata Temple karsog / चिंडी माता मंदिर करसोग

Chindi Mata Temple karsog / चिंडी माता मंदिर करसोग

chindi mata temple ,karsog


शिमला से करसोग मार्ग में चिंडी नामक गाँव स्थित है । शिमला से यह गाँव 90 किलोमीटर की दुरी पर है । करसोग से लगभग 13 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है । यहाँ प्राचीन दुर्गा माँ का मंदिर निर्मित है । जिसे चिंडी माता के नाम से पुकारते है । इस मंदिर का धार्मिक दृष्टी से स्थानीय लोगों में बहुत महत्व है । मंदिर का जीर्णोधार करने के पश्चात् मंदिर की सुन्दरता देखते ही बनती है । इसमें लकड़ी पर सुनदर नक्काशी की गई है । मंदिर में पत्थर की प्रतिमा स्थापित की गई है । यह अष्टभुजी मूर्ति अति प्राचीन मानी जाती है । इसके साथ भगवान विष्णु जी की प्रतिमा भी है । मंदिर के साथ ही देवी का भंडार कक्ष है जिसमें देवी से सम्बंधित कीमती वस्त्र तथा सभी श्रृंगार प्रसाधन रखे है ।

लोगों में देवी के प्रकट होने की कथा प्रचलित है । कहा जाता है कि देवी कुलु जिला के जुफर नामक स्थान से आई है ।वहां पर काठु व सनोहली नाम का घास पाया जात था और माता को इसी का आसन दिया जाता था और खाने के लिए काठु नमक अनाज देते थे । जो एक विशेष प्रकार का अन्न होता था । ये सब माता को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था माता इन सब का परित्याग करके जफर ने नयी जगह की खोज में चल पड़ी । उस समय देवता मनुष्य रूप में चलते थे ।

वहां से जब माता आगे चली तो सबसे पहले शिवा नमक स्थान में रुकी जहाँ देव महासू का मंदिर है । और देव महासू माता के भाई बन गये । देव महासु ने माता को चिंडी नामक जगह के बारे में बताया और कहा कि वहां जाकर बसे । वहां से जब माता चली तो रास्ते में बाजो नामक गाँव आता है । माता को बहुत प्यास लग रही रही थी । माता ने वहां पर पाने माँगा । तब उन्होंने माता को पानी के बदले माता को साथ बार गाय के थन धोकर मिटटी के बर्तन में शुद्ध दूध पिलाया । तो माता ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि आज से इस स्थान को मेरे मायके के रूप में जाना जाएगा और में हर तीसरे और पांचवे साल यहाँ आती रहूंगी और ये प्रथा आज भी प्रचलित है । इसके बाद माता बखरोट पहुंची । वहां पर पानी का एक तालब था । माता ने वहां अपनी शक्ति का स्थान बनाया और आज भी इस स्थान में श्रावण माह में माता का मेला लगता है ।

इसके बाद माता जिओं नामक स्थान में पहुंची ।माता के साथ देव महासू ने दो रक्षक भेजे थे जिनकी माता ने यहाँ स्थापना कर दी । उसके बाद माता जंगल के रास्ते से बाहोग नामक स्थान में पहुंची ।वहां घना जंगल था और उस समय वहां राक्षसों का वास था । माता ने उन राक्षसों का नाश करने लिए उनसे पानी माँगा । उन्होंने पानी तो नहीं दिया पर माता पर कुत्ते छोड़ दिए । तब माता ने गुस्से में आकर सभी राक्षसों को भस्म कर दिया और श्राप दे डाला की इस जगह कुछ भी पैदा न हो । आज भी इस जगह जंगल ही है ।

अब माता माहोग में पहुंची ।दोपहर का समय था । माता को बहुत प्यास लगी थी । माता एक घर में पहुंची जा माता को एक बूढी महिला मिली । माता ने उस से पानी माँगा । बूढी महिला ने माता को बैठने को आसन दिया और फिर साफ़ वर्तन में पिनेके लिए दूध दिया ।उस समय माता काफी थक गई थी तो माता ने आराम करने का आग्रह किया । तो उस बूढी औरत ने माता को एक कमरे में साफ़ बिस्तर बनाकर सुलाया । रात को उस महिला को स्वप्न हुआ और माता ने उस उसे बताया की में चंडी रूप हूँ । आपने मेरा अच्छी तरह सत्कार किया । आज से ये मेरा मायका है में तीसरे व पांचवे साल यहाँ आती रहूंगी ।में यहाँ से जाने के बाद जहाँ भी वास करुँगी आपके स्वयं पता चलेगा । उसके बबाद माता चिंडी नामक स्थान पहुंची ।माता को यह स्थान बहुत अच्छा लगा और यही रहने लगी और यहीं स्थानीय लोगो द्वारा माता का भव्य मंदिर बनाया गया । माँ अपनी मर्यादा को कभी भी नहीं त्यागती माता कभी भी रात्री में कहीं नहीं रूकती और न ही कोई नदी या नाला पार करती है । देवी के नाम पर वर्ष में एक मेले का आयोजन भी किया जाता है । यह मेला चरकंठ नामक स्थान में श्रावण माह में लगता है ।



Comments

Popular posts from this blog

MYSTERIOUS Eternal Flames of Jwala Ji Temple

Amazing 5000 year old Fire Pit of Shiva Temple